कबीरधाम जिले में शस्य गहनता एवं भू-वहन क्षमता प्रतिरूप: एक भौगोलिक अध्ययन
डाॅः विमल कुमार देवांगन
भूगोल अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर
’ब्वततमेचवदकपदह ।नजीवत म्.उंपसरू अपउंसकमूंदहंद/हउंपसण्बवउ
शोध संक्षेपिका
प्रस्तुत अध्ययन द्वितीयक आंकड़ों पर आधारित है। अध्ययन हेतु कबीरधाम जिले के अंतर्गत समस्त विकासखण्डों को इकाई का आधार माना गया है। मानव अपनी क्षमता तथा आवष्यकता के अनुसार प्राकृतिक वातावरण का प्रारंभिक अवस्था में कृषि के अनुकूल वातावरण से अवगत होने का प्रयास करता है। कृषि कार्य हेतु जलवायु, धरातल, अपवाह, मृदा एवं जैविक तत्वों की आवष्यकता होती है जिसमें सर्वत्र विभिन्नता मिलती है। आवष्यकता अनुसार मानव इसमें आंषिक संषोधन कर उपयोगी बनाता है। जिले के कवर्धा विकासखण्ड़ में शस्य गहनता का स्तर (144.6 से अधिक है) जबकि बोड़ला में सबसे शस्य गहनता स्तर निम्न स्तर (124.3 कम) प्राप्त हुआ। उल्लेखनीय है कि जिले के भूमि की वहन क्षमता स्तर भी ज्ञात किया गया है जिसमें सहसपुर-लोहारा एवं कवर्धा विकासखण्ड़ क्रमषः 586 एवं 581 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर उच्च प्राप्त हुए, वहीं जिले के बोड़ला विकासखण्ड़ में न्यून स्तर 523.0 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर प्राप्त हुआ।
ज्ञम्ल्ॅव्त्क्ैरू भूमि उपयोग, शस्य गहनता, भू-वहन क्षमता।
प्रस्तावनाः
कृषि कार्य के विविध रूप हैं जिसके अंतर्गत प्राथमिक जीवन निर्वाहक फसलोत्पादन से लेकर एक व्यापारिक उद्देष्य आपूर्ति हेतु की जाने वाली वैज्ञानिक कृषि सम्मिलित है। कृषि मानव के उन उत्पादक प्रयासों को कहते हैं जिसके द्वारा वह भूमि पर निवास करता हुआ उसके उपयोग का प्रयास करता है।
मानव अपनी क्षमता तथा आवष्यकता के अनुसार प्राकृतिक वातावरण का प्रारंभिक अवस्था में कृषि के अनुकूल वातावरण से अवगत होने का प्रयास करता है। कृषि कार्य हेतु जलवायु, धरातल, अपवाह, मृदा एवं जैविक तत्वों की आवष्यकता होती है जिसमें सर्व़त्र विभिन्नता मिलती है। आवष्यकतानुसार मानव इसमें आंषिक संषोधन कर उपयोगी बनाता है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत सामाजिक, आर्थिक एवं प्राविधिक विकास के स्तर प्रभावित होते हैं। इनके परिणाम स्वरूप कृषि पद्धति एवं प्रविधि में विगत दो शताब्दी से क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। यही कारण है कि कृषि के वर्तमान स्वरूप में अत्यधिक विविधता पाई जाती है। अधिक विकसित एवं वैज्ञानिक कृषि में जहां पर अधिक उपज दर, अधिक उत्पादन एवं अधिक विष्वसनीयता है, वहीं पर प्राथमिक कृषि का स्वरूप आज भी मात्र निर्वाहक बना है जहां कृषि उत्पादन, उसकी अर्थव्यवस्था एवं पद्धतियों में अनेक विभिननताएं है।
कृषि को एक जीविका अर्जित करने साधन के रूप तथा एक विषिष्ट प्रकार के जीवन पद्धति के रूप में देखा जा सकता है। बुकानन (1959) के अनुसार कृषि का स्वरूप प्राकृतिक तथा मानवीय तत्वों के अंतर्सम्बधों का परिणाम है।
कृषि एक ऐसा आर्थिक कार्य हैं जिसका विकास प्रागैतिहासिक काल से हुआ है एवं आज के उन्नत प्राविधिक युग में भी यह अपरिहार्य बना हुआ है जो प्रायः सभी विकसित एवं विकासषील, छोटे अथवा बड़े प्रत्येक क्षेत्रों में सम्पादित होता है। यही कारण है कि अन्य आर्थिक कार्यों की तुलना में कृषि अधिक सार्वभौमिक है। प्रस्तुत अध्ययन में इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कबीरधाम जिले के अनुसूचित जनजातियों की कृषि में फसल गहनता एवं भू-वहन क्षमता के स्तर को ज्ञात करने का प्रयास किया गया है।
अध्ययन क्षेत्रः
जिला कबीरधाम शिवनाथ बेसिन का उत्तर-पश्चिम भाग है। जिला कबीरधाम (21039‘-22035‘ उत्तरी अक्षांश एवं 80048‘-81028‘ पूर्व देशान्तर) छत्तीसगढ़ राज्य के मध्यवर्ती भाग के अंतर्गत है। जिला 4447.05 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में विस्तृत है। जिले की प्रमुख नदी हाफ तथा आगर है जो शिवनाथ की सहायक है। 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की जनसंख्या 8,22,526 है, जिसमें ग्रामीण जनसंख्या 7,34,894 है। प्रशासनिक दृष्टि से जिले में 04 तहसील तथा 04 विकासखंड, 09 राजस्व मंडल तथा 188 पटवारी हल्कों में विभक्त है। जिले में 957 आबाद ग्राम है।
उद्देष्यः
1. अध्ययन क्षेत्र में फसल गहनता एवं भू-वहन क्षमता का परिकलन करना।
2. विष्लेषित फसल गहनता एवं भू-वहन क्षमता स्तर ज्ञात कर क्षेत्रीय असंतुलन का विष्लेषण करना।
परिकल्पनाः
1. छोटे जोत के आकार में फसल गहनता अपेक्षाकृत अधिक होती है।
आंकड़ों के स्त्रोत:
प्रस्तुत अध्ययन द्वितीयक आंकड़ों पर आधारित है। अध्ययन हेतु कबीरधाम जिले के अंतर्गत समस्त विकासखण्डों को इकाई का आधार माना गया है। इस प्रकार जिले में चार विकासखण्ड - बोड़ला, सहसपुर, लोहारा, कवर्धा एवं पंडरिया विकासखण्ड सम्मिलित है।
विधि तंत्रः
फसल गहनता हेतु बी.बी. सिंह 1979 एवं भू-वहन क्षमता हेतु एल.डी. स्टैम्प 1956 की विधि विष्लेषण हेतु प्रयोग में लाई गई। प्रस्तुत अध्ययन में विस्तृत एवं विषुद्ध अध्ययन के विष्लेषण हेतु सारणीकरण पष्चात् उनके विषेषताओं के स्पष्टीकरण के लिए आरेखों एवं मानचित्रों का प्रयोग कर शोध को बोधगम्य बनाया गया।
शस्य गहनता प्रतिरूपः
किसी भी क्षेत्र में शुद्ध बोये गये क्षेत्र की अपेक्षा कुल फसली क्षेत्र का अधिक होना शस्य गहनता की मात्रा को प्रदर्षित करता है। शस्य गहनता का मतलब एक निष्चित क्षेत्र में एक वर्ष में ली जाने वाली फसलों की संख्या से है, अर्थात् एक वर्ष में एक ही कृषि क्षेत्र पर उत्पादित की जाने वाली फसलों की संख्या शस्य गहनता कहलाती है। यदि एक क्षेत्र में वर्ष में एक ही फसल उत्पन्न की जाती है, तो उसकी गहनता 100 प्रतिषत मानी जावेगी, यदि दो फसलें उत्पादित की जावेगी, तो शस्य गहनता 200 प्रतिषत हो जायेगी, सिंह, 1979। शस्य गहनता की गणना उन भागों में आसान होती है, जहां वर्ष में एक ही फसलें उत्पन्न की जाती है। उल्लेखनीय है कि अध्ययन क्षेत्र की मुख्य फसल धान है। शस्य गहनता का सूचकांक एवं भूमि उपयोग का धनात्मक सहसंबंध रहता है। यद्यपि शस्य गहनता का अध्ययन अनेक विद्वानों ने किया है, लेकिन वाई.जी जोषी ने शस्य गहनता के स्थान पर शस्य तीव्रता, जबकि जसबीर सिंह ने शस्य गहनता के स्थान पर भूमि उपयोग क्षमता शब्द का प्रयोग किया है। बी. एन. त्यागी ने शस्य गहनता के स्थान पर कृषि गहनता शब्द का प्रयोग किया है। इन्होंने यह गणना तीन स्तरों में की हैः
1. कुल क्षेत्र में से भूमि उपयोग के अनेक पक्षों द्वारा अधिकृत क्षेत्र का प्रतिषत ज्ञात करके।
2. सम्पूर्ण फसल में से प्रत्येक फसल के अंर्तगत पडने वाले अधिकृत क्षेत्र का प्रतिषत ज्ञात करके।
3. शु़द्ध फसल क्षेत्र में से रबी एवं खरीफ फसल के मौसम में बोये गये फसलों के प्रतिषत की गणना करके।
तत्पष्चात् सभी प्रतिषत श्रेणियों में परिवर्तित कर प्राप्त सम्पूर्ण मान के जोड़ में श्रेणी की कुल संख्या से भाग देकर औसत ज्ञात किया। त्यागी की श्रेणी गुणांक विधि के आधार पर तहसील स्तर पर कबीरधाम जिले की शस्य गहनता ज्ञात कर चार वर्गों में विभाजित किया गया है (मानचित्र क्र्र-1)। परिकलन सूत्र निम्नानुसार है:-
जहां: शस्य गहनता सूचकांक
सकल बोया गया क्षेत्र
शुद्ध बोया गया क्षेत्र
सारणी क्रमांक-01
जिला कबीरधाम: शस्य गहनता सूचकांक (2013-14)
स्त्रोत- व्यक्तिगत गणना
परिकलित प्राप्त मानों के आधार पर जिले में वर्ष 2013-14 मंे शस्य गहनता का औसत सूचकांक 135 प्राप्त हुआ (सारणी क्र.-4.23)।
उच्च शस्य गहनता:
जिले में उच्च शस्य गहनता सूचकांक कवर्धा विकासखण्ड़ में 144.6 प्राप्त हुआ। शस्य गहनता का सीधा संबंध सिंचाई से होता है। कवर्धा विकासखण्ड में समस्त स्रोतों से शुद्ध सिंचित क्षेत्र 15669 हेक्टेयर (40 प्रतिषत) है, जो अन्य क्षेत्रों से अधिक है।
सारणी क्र.-02
जिला कबीरधाम: शस्य गहनता स्तर
स्त्रोत - व्यक्तिगत गणना
इसी प्रकार जिले का निराफसली क्षेत्र एवं वन क्षेत्र का अभाव एवं समतल धरातल अपेक्षाकृत अधिक है। साथ ही हाॅफ नदी द्वारा लाई गयी उपजाऊ मिट्टी के प्रभाव के कारण उक्त विकासखण्ड में शस्य गहनता उच्च प्राप्त हुई।
मध्यम शस्य गहनताः
अध्ययन क्षेत्र में दो विकासखण्ड जिले के उत्तर-पूर्व में पण्डरिया (133.1) एवं सहसपुर-लोहारा विकासखण्ड (137.9) मध्यम शस्य गहनता सूचकांक पाया गया। अध्ययन क्षेत्र में चावल खरीफ फसलों में महत्वपूर्ण फसल है, जो जिले के मैदानी क्षेत्र का विस्तार है, जहां सिंचाई सुविधा की कमी जनसंख्या दबाव अधिक दोनों विकासखण्ड़ों में वन क्षेत्र अपेक्षाकृत अधिक होने के कारण मध्यम शस्य गहनता क्षेत्र के अंतर्गत है।
निम्न शस्य गहनता:
अध्ययन क्षेत्र के बोड़ला विकासखण्ड़ में (124.3) निम्न शस्य गहनता सूचकांक प्राप्त हुआ। उल्लेखनीय है कि इस विकासखण्ड़ में निराफसली क्षेत्र का 39814 हेक्टेयर कम है। विकासखण्ड़ में जहां एक ओर निराफसली क्षेत्र अन्य विकासखण्ड़ों की तुलना में सबसे कम (21.4 प्रतिषत) है, वहीं मैकाल वृष्टि छाया प्रदेष में स्थित होने के कारण सिंचाई का अभाव एवं लैटेराइट मिट्टी की उपलब्धता है। बोडला विकासखण्ड़ में सर्वाधिक वनीय क्षेत्र (56.3 प्रतिषत) इन सभी कारणों के सम्मिलित प्रभाव के कारण यहां शस्य गहनता सूचकांक निम्न प्रदर्षित हुआ (सारणी क्र.-01 एवं मानचित्र क्र-01)।
भू-वहन क्षमता:
भूमि की अनुकूलतम वहन क्षमता का अभिप्राय उस क्षेत्र में निवासरत् जनसंख्या से है, जिनसे उस क्षेत्र विषेष में उत्पादित खाद्यान्न पदार्थों से मानव के शारीरिक, मानसिक विकास हेतु आवष्यक भोजन की पूर्ति होती है। वर्ष 1956 में एल.डी. स्टैम्प ने अन्र्तराष्ट्रीय भौगोलिक सम्मेलन रियोडिजेनेरो में भूमि की वहन क्षमता के संदर्भ में अपनी प्रस्तुती दी थी। इसमें कुल कृषित उत्पादन को कैलोरी में परिवर्तित किया जाता है, क्योंकि कैलोरी से ही व्यक्ति के सामान्य स्वास्थ्य का मापन किया जाता है। ऊर्जा की मात्रा ही मानव शरीर के निर्धारण के लिए आवष्यक तत्व है। प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन 2114 कलौरी की आवष्यकता होती है। इस प्रकार एक स्वस्थ्य व्यक्ति को प्रति वर्ष 772138 कैलोरी की आवष्यकता होगी। स्टैम्प ने इसे पोषक इकाई मानक ;ैजंदकंतक छनजतपजपवद न्दपजद्ध कहा है।
विष्व स्तर पर अनेक विद्वानों ने क्षेत्रीय अध्ययन हेतु भूमि की वहन क्षमता का मापन किया है। भारत में मो. शफी, जसबीर सिंह 1972, श्री कमल शर्मा 1980 उल्लेखनीय है। इन्हीं विधि को आधार मानकर कबीरधाम जिले के भूमि की वहन क्षमता का ज्ञात किया गया है, क्योंकि अध्ययन क्षेत्र में खाद्यान्न फसलों की प्रधानता है।
सर्वप्रथम कृषित भूमि की (प्रति इकाई प्रति हेक्टयरध्प्रति वर्ग कि.मी.) में कितने जनसंख्या के भरण पोषण की क्षमता (वहन क्षमता) है। इसे ज्ञात करने के लिए पहले प्रत्येक खाद्य फसलों के उत्पादन को कैलोरीज में परिवर्तित किया जाता है। टन को कैलोरी में परिवर्तित करने हेतु उत्पादन के स्थान पर प्रति हेक्टयर उपज दर को लिया है, साथ ही समस्त विचाराधीन खाद्य फसलों के कुल क्षेत्रफल को 100 प्रतिषत मानकर उपयोग करते हैं। कुल कृषित क्षेत्र के प्रतिषत को प्रति हेक्टर प्राप्त उपजदर से गुणा करके कुल उत्पादन ज्ञात करते हैं। पुनः प्रत्येक फसल के कुल उत्पादन (जो कि.ग्रा. में होगा, क्योंकि उपजदर कि.ग्रा. में है) को उस फसल के प्रति कि.ग्रा. कैलोरी से गुणा करके समस्त उत्पादित फसलों के कैलोरी योग प्राप्त कर उसमें 16.8 घटा दिया जाता है, क्योंकि यह माना जाता है कि कुल उत्पादन का 16.8 प्रतिषत बीज, कीटों द्वारा नष्ट या व्यर्थ चला जाता है। अतः शेष 83.2 बचा हुआ भाग ही भरण पोषण के लिए उपलब्ध होते हैं। यही कैलोरी उत्पादन प्रति 100 हेक्टेयर अर्थात् प्रति वर्ग कि. मी. के लिए होता है।
अध्ययन क्षेत्र के भूमि वहन क्षमता को ज्ञात करने के लिए जिले के सम्पूर्ण विकासखण्ड़ों को ईकाई का आधार माना गया है। उपर्युक्तानुसार विकासखण्ड़वार सम्पूर्ण उपलब्ध प्राप्त कैलोरी को मानक पोषण इकाई से विभाजित कर भूमि की वहन क्षमता निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया तथा सम्पूर्ण जिले को तीन भूमि की वहन क्षमता वर्गों में उच्च, मध्यम एवं निम्न वहन क्षमता में वर्गीकृत किया।
ब्च् त्र वहन क्षमता सूचकांक
ब्व त्र फसल क्षेत्र में प्रति इकाई उपलब्ध कैलोरी
ैद त्र प्रति व्यक्ति मानक पोषण आवष्यकता
उच्च भू-वहन क्षमता (575ढ)
जिले के उच्च भू-वहन क्षमता वाले क्षेत्र के अंतर्गत सहसपुर-लोहारा (585.6 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी.) एवं कवर्धा (581.6 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी.) विकासखण्ड सम्मिलित हैं। ये वे क्षेत्र है, जो जिले के 300 से 450 मीटर ऊंचाई वाले षिवनाथ पार मैदान के अंतर्गत हैं। जिले के उत्तर-पष्चिम की ओर मैकाल श्रेणी एवं उच्च प्रदेष 900-600 मीटर की तुलना में ढाल कम है। उपरोक्त दोनों विकासखण्ड अपेक्षाकृत मैदानी, कृषि योग्य भूमि से युक्त समतल मैदानी भाग है, जो हाॅफ एवं फोंक नदियों द्वारा सिंचाई सुविधा एवं बहाकर लाई गई मिट्टियों से निर्मित उपजाऊ क्षेत्र है। इसलिए ये दोनों विकासखण्ड उच्च भू-वहन क्षमता के अंतर्गत है। (सारणी क्रमांक-3)।
सारणी क्रमांक-3 जिला कबीरधाम: भूमि की वहन क्षमता,
स्त्रोत - व्यक्तिगत गणना
मध्यम भू-वहन क्षमता (525-550):
में मध्यम स्तर के भू-वहन क्षमता के अंतर्गत पण्ड़रिया (547.4 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर) विकासखण्ड हैं। इस विकासखण्ड में कृषि हेतु सभी भौगोलिक अनुकूल दषाएं हैं, परन्तु लैटेराइट मिट्टी का विस्तार इस क्षेत्र में अपेक्षाकृत अधिक एवं सामान्य ंिसंचाई सुविधाएं एवं लोगों में द्विफसली लेने में जागरूकता में कमी का होने के कारण पण्डरिया क्षेत्र मध्यम भू-वहन क्षमता के अंतर्गत हैं (मानचित्र क्रमांक-2)।
निम्न भू-वहन क्षमता (ढ525)ः
विष्लेषण के आधार पर जिले के एक विकासखण्ड बोड़ला 523.0 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर प्राप्त हुए। इस विकासखण्ड में जहां विरल जनसंख्या (108 व्यक्ति प्रति वर्ग जनसंख्या घनत्व), पर्वतीय धरातल एवं उच्च प्रदेष में स्थित तथा कृषि भूमि नगण्य, इन सभी दषाओं की स्थिति के कारण उपरोक्त विकासखण्ड निम्न भू-वहन क्षमता के अंतर्गत हैं।
सारणी क्र.-04 जिला कबीरधाम: भूमि की वहन क्षमता स्तर
स्त्रोत - व्यक्तिगत गणना
निष्कर्ष:
जिले के कवर्धा विकासखण्ड में शस्य गहनता का स्तर (144.6 से अधिक है) जबकि बोड़ला में सबसे शस्य गहनता स्तर निम्न स्तर (124.3 कम) प्राप्त हुआ।
उल्लेखनीय है कि जिले के भूमि की वहन क्षमता स्तर भी ज्ञात किया गया है जिसमें सहसपुर-लोहारा एवं कवर्धा विकासखण्ड क्रमषः 586 एवं 581 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर उच्च प्राप्त हुए, वहीं जिले के बोड़ला विकासखण्ड में न्यून स्तर 523.0 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर प्राप्त हुआ।
शस्य गहनता का सीधा संबंध सिंचाई से होता है। कवर्धा विकासखंड में समस्त स्त्रोतों से शुध्द सिंचित क्षेत्र 15669 हेक्टेयर (40 प्रतिशत) है, जो अन्य क्षेत्रों से अधिक है। इसी प्रकार निराफसली क्षेत्र एवं वन क्षेत्र का अभाव, समतल धरातल अपेक्षाकृत अधिक है साथ ही हाॅफ नदी का उपजाऊ मिट्टी के प्रभाव के कारण कवर्धा में उच्च शस्य गहनता प्राप्त हुई है वहीं बोड़ला विकासखण्ड में निराफसली क्षेत्र कम है मैकाल वृष्टि छाया प्रदेश में स्थित होने से सिंचाई का अभाव, लैटेराइट मिट्टी की उपलब्धता है। सर्वाधिक वनीय क्षेत्र होने के कारण यहाँ शस्य गहनता निम्न प्राप्त हुई है।
उच्च भू-वहन क्षमता सहसपुर-लोहारा एवं कवर्धा में प्राप्त हुई है जो अपेक्षाकृत कृषि योग्य भूमि से युक्त समतल मैदानी भाग है जहाँ सिंचाई सुविधा एवं उपजाऊ क्षेत्र है, वहीं बोड़ला विकासखंड निम्न भू-वहन क्षमता के अंतर्गत है जहाँ विरल जनसंख्या (108 व्यक्ति प्रतिवर्ग कि.मी.), पर्वतीय धरातल, उच्च प्रदेश, कृषि भूमि नगण्य है।
संदर्भ सूची:
1. Baruah, Utpal, 1979, “Role of High Yielding Varieties in Agricultural Development in Punjab and Haryana”, Dynamics of Agricultural Development in India, ed. Ali Mohammad, Concept Publishing Company, New Delhi, pp 17-38.
2. Gole, Uma, 2008, Regional Disparities in Level of Agricultural Development in Chhattisgarh, The Goa Geographer Vol. V, No. 1, pp. 69-72.
3. Gole, Uma and S.K. Mustak, 2009,“Impact of Irrigational Facilities On Agricultural pattern in Seonath Basin” Uttar Bharat Bhoogol Patrika, Vol. 41, No. 1, pp 127-130.
4. Husain, M., 1972, Crop Combination Regions of Uttar Pradesh, A Study in Methodology, Geographical Review of India, Vol.34, pp 134-156.
5. Kothari, Sadhana,1999, Agricultural Landuse and Population- A Geographical Analysis, Shiva Publishers Distributers, Udaipur, pp 39-92.
6. Mohammad, Noor and Abdul Majeed,1979, “Socio-Economic Factors and Diffusion of Agricultural Innovations”, Dynamics of Agricultural Development in India, ed. Ali Mohammad, Concept Publishing Company, Delhi, pp 151-175.
7. Patil, Jayant, 2001, “Agriculture and Horticulture Programmes for Develpoment of Schedule Tribes in India”, Vanyajati, Vol.2, pp 15-17.
8. Pradhan, A, Guha A. ,1997, Agro Biodiversity and Drought Resistant Agriculture Practices among the Tribal People of Jashpur in Mayurbhanj District of Orissa, Indian Journal of Geo. and Env. Vol.2, PP. 59-61.
9. Rafiullah, S.M., 1963, “A New Approach to functional Classification of Towns” Genetical Agravea Vol.17 Pp 104-127.
10. Sharma, S.K. 1998, “Reflection of Social Enequality on Adoption of Development Measures: an example of Agricultural Innovations”, pp. 165-177 in Y.G. Joshi and D.K. Verma, eds, Social Environment for sustainable Develop ment.Jaipur: Rawat Publications.
11. Stamp, L. Dudley, 1934, “Land Utilization Survey of Britain”, Geographical Review, Vol. 24, No. 4, pp 646-650
12. Tyagi, B.S., 1972, Agricultural Intensity in Chunar Tahsil, District Mirzapur, U.P., Nat.Geog. Jour. of India, Vol. 18 (1).
13. Baruah, Utpal, 1979, “Role of High Yielding Varieties in Agricultural Development in Punjab and Haryana”, Dynamics of Agricultural Development in India, ed. Ali Mohammad, Concept Publishing Company, New Delhi, pp 17-38.
14. Gole, Uma, 2008, Regional Disparities in Level of Agricultural Development in Chhattisgarh, The Goa Geographer Vol. V, No. 1, pp. 69-72.
15. Gole, Uma and S.K. Mustak, 2009, “Impact of Irrigational Facilities on Agricultural pattern in Seonath Basin” Uttar Bharat Bhoogol Patrika, Vol. 41, No. 1, pp 127-130.
16. Husain, M.,1972, Crop Combination Regions of Uttar Pradesh, A Study in Methodology, Geographical Review of India, Vol.34, pp 134-156.
17. Kothari, Sadhana, 1999, Agricultural Landuse and Population- A Geographical Analysis, Shiva Publishers Distributers, Udaipur, pp 39-92.
18. Mohammad, Noor and Abdul Majeed, 1979, “Socio-Economic Factors and Diffusion of Agricultural Innovations”, Dynamics of Agricultural Development in India, ed. Ali Mohammad, Concept Publishing Company, Delhi, pp 151-175.
19. Patil, Jayant, 2001, “Agriculture and Horticulture Programmes for Develpoment of Schedule Tribes in India”, Vanyajati, Vol.2, pp 15-17.
20. Pradhan, A, Guha A., 1997, Agro Biodiversity and Drought Resistant Agriculture Practices among the Tribal People of Jashpur in Mayurbhanj District of Orissa, Indian Journal of Geo. and Env. Vol.2, PP. 59-61.
21. Rafiullah, S.M., 1963, “A New Approach to functional Classification of Towns” Genetical Agravea Vol.17 Pp 104-127.
22. Sharma, S.K. 1998, “Reflection of Social Enequality on Adoption of Development Measures: an example of Agricultural Innovations”, pp. 165-177 in Y.G. Joshi and D.K. Verma, eds, Social Environment for sustainable Development.Jaipur: Rawat Publications.
23. Stamp, L. Dudley, 1934, “Land Utilization Survey of Britain”, Geographical Review, Vol. 24, No. 4, pp 646-650
24. Tyagi, B.S., 1972, Agricultural Intensity in Chunar Tahsil, District Mirzapur, U.P., Nat.Geog. Jour. of India, Vol. 18 (1).
Received on 23.01.2019 Modified on 11.02.2019
Accepted on 24.02.2019 © A&V Publications All right reserved
Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(1):119-124.